* केडीपीएमए का अस्थायी प्रतिबन्ध लगाने का अनुरोध
बैंगलुरू- कर्नाटक ड्रग एण्ड फार्मास्यूटिकल मैन्यूफैक्चरर्स ऐसो. ;केडीपीएमएद्ध ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि चीन में कोरोना वायरस के प्रकोप से उत्पन्न हालात के मद्देनजर नैशनल लिस्ट ऑफ इसेंशियल मेडीसिन ;एनएलईएमद्ध के अन्तर्गत आने वाले सभी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडिएन्ट्स ;एपीआईद्ध तथा फॉर्मूलेशन्स के निर्यात पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया जाए। चीन में कोरोना वायरस के प्रकोप से उत्पन्न स्थितियों के कारण भारतीय एपीआई के मूल्यों में 40 प्रतिशत तक की वृ( हो गयी है। चीन में एपीआई संयंत्रों में काम ठप्प हो गया है और भारतीय फार्मा कम्पनियों में कई उत्पादों के निर्माण की गति धीमी हो गयी है क्योंकि भारतीय फार्मा उद्योग काफी हद तक चीन से आने वाले एपीआई और इन्टरमीडिएट्स पर निर्भर हैं। इन सब परिदृश्यों को लेकर हमारा मानना है कि जब तक चीन में हालत वापिस सामान्य नहीं हो जाते तब तक देश के मरीजों की स्वास्थ्य सुरक्षा के मद्देनजर तथा दवाओं के बढते मूल्यों को नियंत्रित करने के लिए एनएलईएम के अन्तर्गत आती सभी बल्क दवाओं तथा फार्मूलेशनस के निर्यात पर अस्थायी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। एमबॉयोटिक के निदेशक तथा केडीपीएमए के सचिव हरीश के. जैन ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सरकार को ध्यान देकर तत्काल निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते केन्द्रीय चीन के हेनान, बुहान, हुबेई, झेंजियांग तथा गौंगडोंग में अजिथ्रोमाइसिन, अमोक्सिसीलिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन, नोरफ्लोक्सासिन, इनरोफ्लोक्सासिन, फ्लोरफेनिकोल, बीटा केरोटीन, कैलिशयम पैन्टोथिनेट, आईब्रूप्रोफेन तथा विटामिन ए, बी-12 तथा डी जैसे प्रमुख 100 से अधिक फार्मा रसायनों का उत्पादन करने वाले 50 फार्मा सप्लायर्स ने अपने संचालन बंद कर रखे हैं। भारतीय फार्मा कम्पनियों के पास फॉर्मूलश्ेनस या कच्ची सामग्री का जितना भी स्टॉक है, अन्य देशों को उसका निर्यात नहीं किया जाना चाहिए। यह घरेलू आपूर्ति के लिए आरक्षित रखा जाना चाहिए। वर्तमान स्थितियों में दवाओं की कमी की स्थिति में निपटने के लिए यह एकमात्र रास्ता है। वर्तमान में फॉर्मूलेशनस निर्माता एक संख्या के एपीआई तक पहुंच के अभाव में धीमी गति से चल रहे हैं और इस गति में आगे और कमी आएगी। वर्तमान दृश्य बताते हैं कि एपीआई के मूल्यों में 40 प्रतिशत से अधिक की बढोतरी हो गयी है। इनमें पैरासीटामोल, एरिथ्रोमाईसिन तथा विटामिन शामिल हैं। हमारी कुछ कम्पनियों ने सप्लाई ऑर्डर प्राप्त किए हैं परन्तु एपीआई अनुपलब्ध है, कई निर्माण संयंत्रों में निर्माण की गतिविधियां बंद है। यह राजस्व उत्पादन में हानिकारक है। केडीपीएमए की संचालन समिति के सदस्य तथा डॉजियर सोलूशन्स एण्ड सर्विसेज एलएलपी के पदनामित भागीदार सुरेश खन्ना के अनुसार बल्क ड्रग्स निर्माण के लिए भी भारतीय फार्मा कम्पनियां काफी हद तक चीन से आने वाले इन्टरमीडिएट्स पर निर्भर हैं। इनकी सप्लाई में किसी प्रकार की बाधा सीधा उत्पादन को प्रभावित करती है। भारत में एपीआई का निर्माण करने के लिए सरकार को इसके आधार से लेकर अंतिम चरण तक के निर्माण/उत्पादन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ताकि आत्म निर्भरता हो सके परन्तु यह लम्बी अवधि के कदम हैं, वर्तमान में अल्पकाल के लिए सरकार को निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। चीन में संयंत्रों के बन्द होने का प्रभाव कर्नाटक तथा भारत में निर्माता कम्पनियों पर पड़ रहा है से सृष्टि फार्मास्यूटिकल्स के निदेशक तथा केडीपीएमए के सदस्य जतिश एन.सेठ ने भी सहमति जताते हुए कहा कि यदि सरकार तत्काल इस ओर ध्यान नहीं देगी तो यह एण्टी-बॉयोटिक की उपलब्धता को गम्भीर रूप से प्रभावित करेगी। सरकार को कच्ची सामग्री से एण्टी-बॉयोटिक के फिनिश डोजेज प्रारूप में निर्माण के लिए अपनी निर्माण सुविधाओं को तत्काल रूप से निर्देश देने चाहिए और इसके लिए निजी निर्माताओं की भी पहचान करनी चाहिए।