रायपुर- खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारियों ने एक राज्य में दो अलग-अलग मापदण्ड अपनाए हैं। प्रदेश के 27 जिलों में से 16 में सहायक औषधि नियंत्रकों को अभिहित अधिकारी का प्रभार दिया गया है जबकि शेष ग्यारह जिलों में सीएमएचओ को प्रभारी बनाया गया है। बिना नियमों के औषधि विभाग के अधिकारी फूड लाईसेंस जारी कर रहे हैं। बड़ी बात यह है कि अब तक जितने भी मामले नकली या घटिया दवाओं के पकड़े गए हैं वह पुलिस ने ही पकड़े हैं, औषधि अधिकारियों को इनकी भनक तक नहीं रहती। ऐसे में जो अधिकारी खुद का काम नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी दे दी गयी है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की 13 दिसम्बर 2017 की अधिसूचना के अनुसार एसडीएम को अभिहित अधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी जानी चाहिए थी परन्तु अधिकारियों ने राज्य में सहायक औषधि नियंत्रकों को अभिहित अधिकारी बनाने सम्बन्धी आदेश जारी करवा लिया। वर्ष 2015 से 2016 के दौरान कोई अभिहित अधिकारी नहीं था। तब दो अधिकारियों को इसकी जिम्मेदारी दी गयी थी। इसके बाद आयुक्त एसएन राठौड़ द्वारा 16 जिलों में पदस्थ सहायक औषधि नियंत्रकों को अभिहित अधिकारी बनाने सम्बन्धी आदेश जारी करवा लिया। वर्ष 201 से 2016 के दौरान कोई अभिहित अधिकारी नहीं था। तब दो अधिकारियों को इसकी जिम्मेदारी दी गयी थी। इसके बाद आयुक्त एसएन राठौड़ द्वारा 16 जिलों में पदस्थ सहायक औषधि नियंत्रकों को अभिहित अधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी दे दी गयी। एफएसएसएआई ने राज्य सरकार को 04 अगस्त तक अभिहित अधिकारी नियुक्त करने की मोहलत दी थी लेकिन राज्य सरकार अभी तक तय नहीं कर पायी। फार्मेसी की पढाई करने वालों को फूड सेफ्टी की जिम्मेदारी दी गयी है। दूध में किन-किन केमिकल की मिलावट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है अथवा आम को कार्बाइड से पकाने का क्या नुकसान है, यह फूड एक्ट में है न कि ड्रग एक्ट में। खाद्य एवं औषधि नियंत्रण प्रशासन के नियंत्रक एस.एन राठौड़ का कहना है कि 16 जिलों में सहायक औषधि नियंत्रक को अभिहित अधिकारी और बाकी में सीएमएचओ को प्रभार दिया गया है। सैम्पलिंग का काम अच्छा चल रहा है कोई दिक्कत नहीं है।

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