चार अफ्रीकी देशों में ओरल पोलियो वैक्सीन से जुड़े पोलियो के नए मामले सामने आए हैं। दरअसल पोलियो वायरल से संक्रमित होने के मामलों की तुलना में अब इससे बचाव के लिए पिलायी जाने वाली ओरल पोलियो वैक्सीन से उत्पन्न होने वाले वायरस से अधिक बच्चे अपंग हो रहे हैं। ऐसे मामलों को वैक्सीनजनित पोलियो मामला कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और उससे जुड़े समूहों ने पिछले दिनों नाइजीरिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, सैन्ट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक तथा अंगोला में वैक्सीन के कारण हुए पोलियो के नौ मामलों की पहचान की है। पोलियो के प्रकोप वाले सात अन्य अफ्रीकी देशां के साथ एशिया क्षेत्र में अफगानिस्तान और पाकिस्तान में इस प्रकार के मामले मिले थे। सामान्यतया पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को पोलियो वायरस प्रभावित करता है। लगभग 200 संक्रमित बच्चों में से एक बच्चा लकवाग्रस्त हो जाता है। उन लकवा ग्रस्त बच्चों में से 5 से 10 प्रतिशत बच्चों की मौत ब्रीदिंग मसल्स के अपंग हो जाने के कारण हो जाती है। विकासशील देशों में ओरल पोलियो वैक्सीन का उपयोग इसकी कम लागत और पहुंच के कारण किया जाता है, जिसमें प्रति खुराक केवल दो बून्दों की आवश्यकता होती है। विशेषज्ञों की माने तो कुछ मामलों में ओरल पोलियो वैक्सीन में मौजूद लाइव वायरस खुद में परिवर्तन कर नए तरीके से घातक रूप में सामने आते हैं। वैक्सीन के कारण पोलियो के जो मामले सामने आए हैं उन में वैक्सीन में मौजूद टाइप-2 वायरस द्वारा अटैक किया गया है। वर्ष 2000 तक पोलियो का सफाया करने के लक्ष्य के साथ वर्ष 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल शुरू की गयी थी। पोलियो के मामलों में वर्ष 1988 के बाद से 99 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आयी है। वर्ष 1988 में जहां 125 देशों में पोलियो के 3 लाख 50 हजार मामले थे वहीं वर्ष 2018 में केवल 33 मामले ही सामने आए हैं। इंडिपेन्डेन्ट मॉनिटनिंग बोर्ड द्वारा इस महीने जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे निपटने के लिए नयी रणनीति जरूरी है। डब्ल्यू एचओ के पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के प्रमुख डॉ. पास्कल मकंड ने कहा कि ऐसे मामलों में वृ( का मुख्य कारण 100 प्रतिशत टीकाकरण न होना है।

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