नयी दिल्ली- जानवरों-पशुओं के सरंक्षण के लिए काम करने वाली संस्था पेटा ने दिल्ली उच्च-न्यायालय में याचिका पेश कर विषरोधी दवा के उत्पाद में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की है। पेटा की ओर से कोर्ट में पेश हुए वकील राजशेखर राव ने दलील दी कि विषरोधी दवाओं और बाकी की एण्टी-बॉडी के उत्पादों में जानवरों का इस्तेमाल किया जाता है, यह उनके प्रति क्रूरता है। आधुनिक समय में दवाओं के निर्माण के लिए ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जिसमें जानवरों का प्रयोग न करना पड़े। दवाओं के निर्माण में जानवरों का इस्तेमाल धीरे-धीरे बन्द कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इस तरह की दवाओं के प्रयोग के लिए कई वैकल्पिक उपाय भी हैं। आम तौर पर विषरोधी दवाओं के उत्पादन में घोड़े तथा खच्चरों का प्रयोग सैंकड़ों वर्षों से होता आ रहा है। इसका प्रयोग भारत से पहले दूसरे देशों में शुरू हुआ। फ्रांस के बॉयोलॉजिस्ट अल्बर्ट कैलमेट ने इसका सबसे पहले प्रयोग साल 1896 में किया था। उन्होंने वियतमान में बाढ के कारण सांपों का प्रकोप बढने पर विषरोधी दवा को विकसित किया था। इस दवा के लिए जानवरों पर प्रयोग किया गया था। उन्होंने सांप के जहर को सीमित मात्रा में घोड़े के शरीर में दाखिल किया और फिर घोड़े के शरीर से रक्त निकाल कर विषरोधी दवा तैयार की थी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि दवा के उत्पाद में जानवरों का प्रयोग किए जाने से उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर पड़ता है। यह सीधे तौर पर पशु अधिकार का भी हनन है।
विषरोधी दवाओं के उत्पाद में घोड़े और खच्चरों के प्रयोग किए जाने के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सख्त रूख अपनाते हुए केन्द्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड तथा पशुओं पर प्रयोगों ;एक्सपेरिमेन्ट्सद्ध का नियंत्रण करने वाले बोर्ड सीपीसीएसईसी से जबाब मांगा है। दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन तथा न्यायाधीश अनूप जयराम भम्भानी की बेच ने सरकार से इस मामले पर जबाब दाखिल करने को कहा है।

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