छापामारी-गिरफ्तारी की समूची कवायद हुई टांय-टांय फिस्स
चितौड़गढ- लगभग एक माह पहले पुलिस द्वारा झोलाछाप चिकित्सकों के खिलाफ अभियान चला कर लगभग 150 झोलाछाप नीम-हकीमों को गिरफ्तार किया गया था परन्तु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों को साथ नहीं लिया गया। परिणामतः चिकित्सा विभाग के अधिकारियों ने गिरफ्तार हुए झोलाछाप नीम-हकीमों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने से इंकार कर दिया। पुलिस द्वारा साधारण धाराओं में उनकी गिरफ्तारी दर्शाकर जमानत पर उन्हें छोड़ना पड़ा। चितौड़गढ जिले में लगभग 150 झोलाछाप चिकित्सक क्लीनिक के नाम पर अपनी दुकानदारी पुनः चलाने लगे हैं। इनसे इलाज लेना एक प्रकार से मौत को बुलावा देना है। हालांकि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के पास झोलाछापों के इलाज से मरीजों की मौत होने का कोई रिकार्ड नहीं है परन्तु पिछले पांच वर्षों के दौरान इनके हाथों 10 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। सीएमएचओ डॉ. इन्द्रजीत सिंह का कहना है कि झोलाछाप से इलाज लेने के बाद मौत होने का कोई केस नहीं है परन्तु वास्तविकता यह है कि इनमें सम्बंधित मौत के चार मामले तो पुलिस के रिकार्ड में दर्ज हैं। कोर्ट में केस चल रहे हैं। भादसोड़ा के नपानिया में लक्ष्मी लाल मेनारिया की मौत झोलाछाप आलोक सिकदर उर्फ कालिया के यहां हुई थी। मां मांगी बाई ने बताया हाथ -पैर दुख रहे थे दवाई लेने की कह कर गया था, डॉक्टर ने दवा दी तो उसकी बतीसी बन्द हो गयी फिर अचेत हो गया। चितौड़गढ ले जा रहे थे, रास्ते में दम तोड़ दिया। पुत्र प्रेम शंकर पिता गणेशलाल ने बताया कि इसी डॉक्टर के पास इलाज के बाद सूरखण्ड के गणेश लोहार की मौत हुई थी। जगदीश अग्रवाल की शिकायत पर चिकित्सा विभाग की टीम पहुंची तो आलोक फरार हो गया। दुकान सील की थी जो कि वापिस खुल चुकी है। आंवलहेड़ा पंचायत के दल्ला का खेड़ा में एक घर में मीडियाकर्मी को नारायण की पत्नि कमला ने एक फोटो फ्रेम में 7 महीने की बेटी खुशिया की फोटो दिखाई और बताया कि दस्त होने पर 04 मार्च 2014 को उसे बस्सी में झोलाछाप के पास ले गयी थी। उसकी बताई दवा की परन्तु बच्ची रात भर रोती रही। सुबह वापस गए तो भीलवाड़ा से कोर्स मंगाने के नाम पर तीन हजार रूपए लिए, इंजेक्शन लगाया, कुछ देर में खुशिया ने आंखें फेर दी। सीरियस होने पर चितौड़गढ ले गए, झोलाछाप भी साथ था लेकिन जैसे ही डॉक्टर ने बच्ची को मृत घोषित किया झोलाछाप भाग छूटा। 30 दिसम्बर को चिकित्सा एवं पुलिस विभाग ने संयुक्त रूप से भदेसर के बानसेन में छापा मार कर प्रदीप कुमार नामक झोलाछाप के यहां कार्यवाही की। कार्यवाही को एक महीना भी नहीं हुआ वह फिर से अपनी दुकान चला रहा है। मीडियाकर्मी द्वारा पूछे जाने पर उसने कहा कुछ दिन पहले कार्यवाही हुई थी परन्तु क्या करें कोई अन्य काम नहीं है, इसलिए सेवा कर रहे हैं। उसके पास दो-तीन महिलाएं इलाज के लिए बैठी थी। 30 दिसम्बर को बोजूंदा के बासहीरा, बांसी के अमित विश्वास, गंगरार के दुलाल कुमार विश्वास, पांडोली स्टेशन के संजीत मलिक, भगवानपुरा के फूल सिंह, बाड़ोदिया के सुब्रत, निकुम्भ चौराहा के स्वप्न कुमार, बानसेन के प्रदीप कुमार व लेसवा के माइकल विश्वास के खिलाफ कार्यवाही की गयी थी। गिरफ्तारी के बाद यह जेल भेजे गए थे परन्तु जमानत पर रिहा होते ही फिर क्लीनिक चला रहे हैं। अन्य झोलाछापों की दुकानें भी चल रही हैं। चिकित्सा विभाग की ओर से वर्ष 2007 में कराए गए सर्वे में कपासन उपखण्ड में 16, चितौड़गढ में 15 व बेगू में 17 झोलाछाप नीम-हकीमों की डिग्रियां संदिग्ध पायी गयी परन्तु आज तक जांच नहीं हुई। जिले के प्रत्येक ब्लॉक में औसतन 15 से 20 झोलाछाप सक्रिय हैं। इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 411, भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 की धारा 15 ;2द्ध बिना पंजीकरण आधुनिक चिकित्सा पि(ति में चिकित्सा अभ्यास, इसी अधिनियम की धारा 17 ;4द्ध तथा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम की धारा 18 ;सीद्ध बिना लाईसेंस औषधियों का विक्रय तथा फर्जी डिग्री पर आईएमए की धारा 4 में कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है। इसके बावजूद इनके खिलाफ सार्थक कार्यवाही नहीं की जाती है। कानूनी रूप से जब तक मामला न्यायालय में विचाराधीन हो तो कोई भी सम्बंधित चिकित्सक भी चिकित्सा अभ्यास नहीं कर सकता।

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