* पशुओं पर प्रयोग के मिले साकारात्मक क्लीनिकल ट्रायल बाकी
अहमदाबाद- लाइलाज माने जाने वाले कैंसर रोग का उपचार करने के लिए दवा बनाने की दिशा में भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान ;आईआईटीद्ध गांधीनगर ;गुजरातद्ध की प्रोफेसर सिवप्रिया किरूबाकरण को सफलता मिलती दिखाई दे रही है। 5 वर्षों की कड़ी मेहनत से 120 दवाओं के सैम्पल तैयार करने के बाद अलग-अलग प्रकार की दवाओं के 5 सैम्पल लैब परीक्षण में बेहतर पाए गए हैं। चूहों और श्वान के शरीर के कुछ हिस्से में इन दवाओं के प्रयोग करने पर उत्साहवर्धक परिणाम मिले हैं। इससे कैंसर की कारगर दवा तैयार होने की आस जगी है। अभी चूहों व श्वान के अन्य हिस्सों पर प्रयोग व दवा नमूनों का क्लीनिकल ट्रायल बाकी है। दवाओं के सैम्पल तैयार करने वाली प्रो. सिवप्रिया किरूबाकरण ने बताया कि भारत में ही एक दवा विकसित करने का उनका सपना है। कड़ी मेहनत के बाद उसे 5 ऐसी दवाओं के नमूने बनाने में सफलता मिली है जो कैंसर तथा पैंक्रियाज कैंसर के उपचार में ज्यादा असरदार है। उम्मीद है कि दवाओं के यह सैम्पल क्लीनिकल ट्रॉयल के दौरान भी काफी कारगर सि( होंगे। कैंसर के उपचार में कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी दी जाती है। इससे कैंसर कोशिकाओं के डीएनए नष्ट होते हैं परन्तु इनके साथ-साथ सामान्य कोशिकाओं के डीएनए भी नष्ट हो जाते हैं कैनिस प्रोटीन डीएनए की फिर से मरम्मत कर देता है परन्तु इस दौरान वह कैंसर कोशिकाओं के डीएनए की भी फिर से मरम्मत कर देता है। इसी कारण अभी तक कैंसर खत्म करने में हमें सफलता नहीं मिल रही है लेकिन शोध कर जिन दवाओं के 5 सैम्पल तैयार किए गए हैं उनकी मदद से कैंसर कोशिकाओं के डीएनए की फिर से मरमत करने से कैनिस प्रोटीन, एटीआर/एटीएन को रोका जा सकता है। प्रो. सिवप्रिया द्वारा अपनी इस शोध के लिए भारतीय पेटेन्ट कार्यालय में पेटेन्ट भी फाइल किया गया है। इस शोध में उनके विधार्थी अल्ताफ शेख, श्री माधवी, रश्मि तथा सुगाथा की भी अहम भूमिका रही है।