* हादसों के बाद कुछ समय के लिए सक्रियता दिखाता है विभाग
गया- लगता है हमारे देश में नियम-कानून बनाए ही तोड़ने के लिए जाते हैं। अथवा हम जो नियम-कानून बनाते हैं वह केवल निजी लोगों पर लागू होते हैं सरकारी लोगों को इन से छूट होती है या उनके पास इसे तोड़ने का हक होता है। इसलिए जब सरकारी स्तर पर नियम-कानून तोड़े जाते हैं तो तोड़ने वालों के खिलाफ कभी कोई कार्यवही नहीं होती। बिहार के गया से मामला सामने आया है कि जय प्रकाश नारायण अस्पताल परिसर में पिछले 18 वर्षों से बिना लाईसेंस प्राप्त किए महावीर ब्लड बैंक का संचालन किया जा रहा है। इस अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी सिविल सर्जन स्वयं बैठते हैं। निश्चित रूप से पिछले 18 वर्षों में इस रक्त बैंक द्वारा रक्त उत्पाद के किए गए लेन-देन पर सवालिया निशान है। जब केन्द्रीय औषधि नियंत्रक द्वारा लाईसेंस ही जारी नहीं किया गया है तो रक्त बैंक संचालन के लिए निर्धारित मापदण्डों का पालन भी क्या होता होगा। बताया जाता है कि इसमें जांच के साधन नहीं है केवल खानापूर्ति के लिए जांच की सुविधा है। इसका कोई लेखा-जोखा भी संधारित नहीं है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी नहीं है। यही है हमारे देश की वास्तविक तस्वीर। एसी रूम में बैठकर आंकड़ों की जादूगरी हमारे देश में खूब दिखाई जाती है। जब नियामकीय प्राधिकारी द्वारा लाईसेंस ही जारी नहीं किया गया तो फिर उसके द्वारा 18 वर्षों में निरीक्षण भी कैसे किया जाता। लाईसेंस होगा तभी निरीक्षण होगा। यह नियामकीय प्राधिकारियों की जिम्मेदारी नहीं है कि वह यह देखते फिरे कि अवैध रूप से दवाओं की बिक्री या अवैध रूप से रक्त बैंक का संचालन कहां हो रहा है। सरकारी संस्थानों में सब छूट है।