* चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा पुलिस विभाग में सामंजस्य का अभाव, आरोपियों को लाभ मिलना तय
राजस्थान के आदिवासी बहुल इलाके बांसवाड़ा जिले में पिछले दिनों पुलिस विभाग द्वारा झोलाछाप डाक्टर्स के खिलाफ कार्यवाहियां की गयी हैं। पुलिस की इस कार्यवाहियों के बाद इन तथाकथित डाक्टरों के खिलाफ क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में है परन्तु इन कार्यवाहियों से यह तो स्पष्ट हो गया है कि चिकित्सा के नाम पर राज्य में नीम-हकीमों द्वारा लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है, उन्हें आर्थिक रूप से लूटा जा रहा है। हालांकि नीम-हकीमों के खिलाफ कार्यवाही करने की जिम्मेदारी चिकित्सा विभाग की है परन्तु इस मामले में विभाग का रूख हमेशा लचीला बना रहा है। जिले में पुलिस ने तीसरे दिन भी इनकी धरपकड़ का क्रम जारी रखा परन्तु इस कार्यवाही में पुलिस व चिकित्सा विभाग में परस्पर सहयोग व समन्वय का अभाव रहा। परिणामतः इन पर शिकंजा कसना दूर का ख्वाब बन गया है। दरअसल राज्य में संगठित अपराध के 18 बिन्दुओं पर राज्य के डीजी भूपेन्द्र सिंह ने 26 को सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को कार्यवाही के दिशा-निर्देश दिए थे। इतफाकन उसी दिन क्षेत्र के बोरावट गांव में झोलाछाप के देसी इलाज से एक मरीज की मौत हो गयी तो पुलिस ने तथाकथित डॉक्टरों उर्फ नीम-हकीमों की धरपकड़ शुरू कर दी। ऐसी कार्यवाही के समय पुलिस को क्षेत्र के चिकित्सा अधिकारी को साथ लेना चाहिए था ताकि मौके से डिग्री-दस्तावेज, प्रतिबंधित दवाओं सहित अवैध गतिविधियों के साक्ष्य लिए जा सकें। इसके बाद धोखाखड़ी कर मानव जीवन को संकट में डालने का केस दर्ज किया जाता ताकि कोर्ट में मजबूती से कार्यवाही होती परन्तु ऐसा नहीं किया गया। कार्यवाही के बाद रिपोर्ट मांगने पर भविष्य में कोर्ट में उठने वाले सवालों के मद्देनजर चिकित्सा अधिकारी बैकफुट पर रहे। पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 107, 151 के तहत नीम हकीमों को गिरफ्तार कर निरोधात्मक कार्यवाही की है। इस दौरान इनके ठिकाने सील नहीं किए गए। इससे कुछ घण्टों बाद या अगले दिन छूटने पर आरोपियों को सबूत मिटाने और दूसरी जगह शिफ्ट होने का मौका मिल गया। इसके साथ ही इनके खिलाफ केस और कोर्ट में सजा दिलवाने की पुख्ता कार्यवाही नहीं होने से यह कार्यवाही चिकित्सा क्षेत्र में संगठित माफिया के खिलाफ केवल छेड़-छाड़ बन कर रह गयी है। चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि उनकी तरफ से ब्लॉक वार नीम-हकीमों को चिन्हित कर रिपोर्ट प्रशासन को पहले से ही दी हुई थी। ऐसे में पहले समन्वय बना कर कार्यवाही होती तो एफआईआर में दिक्कतें नहीं आती। जानकारों का कहना है कि नियमानुसार नीम-हकीमों के ठिकानों पर कार्यवाही में चिकित्सा विभाग के ड्रग इंस्पेक्टर, क्षेत्र के चिकित्सा अधिकारी, पुलिस तथा सीएमएचओ या उसके प्रतिनिधि की कमेटी या सांझा टीम बना कर पहले शिडयूल तय होना चाहिए। इससे मौके से क्लीनिकल इस्टब्लिशमैन्ट ;रजिस्ट्रेशन एण्ड रेगूलेशनद्ध एक्ट के तहत पंजीयन, देय सुविधा के लिए अधिकृत होने की योग्यता, प्रतिबंधित दवाओं की बरामदगी आदि सहित विभिन्न पहलुओं की पड़ताल कर केस दर्ज कराने के लिए पर्याप्त साक्ष्य बटोरे जाने चाहिए। चूंकि ड्रग इंस्पेक्टर, सीएमएचओ या प्रतिनिधि सभी जगह पहुंचने मुमकिन नहीं हैं। ऐसे में विकल्प क्षेत्र के एमओआईसी हैं जिनकी मौजूदगी में पुलिस की ओर से दुकान, दवाखाना सील किया जाना चाहिए ताकि बाद में सबूत जुटा कर पुख्ता कार्यवाही की जा सके। परन्तु हालिया कार्यवाहियों में दोनों विभाग एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। बांसवाड़ा सीएमएचओ डॉ. एचएल ताबियार का कथन है कि सुधार के लिए पुलिस का आगे आकर सहयोग करना अच्छी बात है। विभाग की ओर से प्रशासन को सूचियां देने के बाद से हम भी मदद की प्रतीक्षा में थे। कार्यवाही के समय एमओआईसी की मौजूदगी में अवैध क्लीनिक सील करवा कर सबूत जुटाते हुए एफआईआर दर्ज करवाना सही होता परन्तु ऐसा नहीं किया गया। अब बिना सबूत आगे कोई जवाब कैसे देगा? बांसवाड़ा पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत का कहना है कि लोगों के जीवन की सुरक्षा का जिम्मा राज्य का है और पुलिस इसका निर्वहन करती है। खतरा किसी भी कारण से हो, यदि कोई जिम्मेदार आगे नहीं आ रहा तो पुलिस ने अपने क्षेत्राधिकार में संज्ञेय अपराध रोकने के लिए निरोधात्मक कार्यवाही की है और आगे भी करेंगें। एफआईआर दर्ज करवाने का दायित्व चिकित्सा विभाग का है, निष्ठा की कमी है। कलक्टर, सीएमएचओ को सूचित किया परन्तु पुलिस को सहयोग नहीं मिला। इस बारे में सरकार को कार्यवाही के लिए लिखेंगें। ‘‘सत्य है बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है’’